1 . बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
सारांश : अकसर हम अपने आसपास के लोगो को भला बुरा कहते है पर कभी भी खुद के व्यवहार पर विचार नहीं करते इस दोहे मे कबीर दास जी कहना चाहते है कि हमें दुसरो का आंकलन करने से पहले खुद के कर्मो पर विचार कर लेना चाहिये ा2 . पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ: सिर्फ पुस्तकें पढ़ते पढ़ते संसार में कितने ही लोगो ने अपना सम्पूर्ण जिवन व्यतीत कर लिया , परन्तु सभी विद्वान न हो सके। परन्तु यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर का ही अर्थ अच्छी तरह समझ ले , अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो इक सच्चा ज्ञानी बन जाता है।
सारांश : हम सभी अपने जीवन मई कई पुस्तके पढ़ते है अपने बचपन से लेकर अपने अंतिम समय तक जिससे हम कई प्रकार कि जानकारियाँ इकत्रित कर लेते है परन्तु ज्ञानि व्यक्ति वह होता है जो उन सभी ज्ञान को अपने जीवन अपने व्यक्तित्व मै लाता है जिसका व्यवहार विनम्र और निर्मल होता है जो प्रेम पूर्वक लोगो से वयवहार करता है ा
3 . साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
अर्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक ज्ञान को अपनाले ले और निरर्थक बातों या ज्ञान को न अपनाये ।
सारांश : इस दोहे मे कबीर दास जी कहते है कि हम सभी को ऐसा सज्जन वयक्ति बनना चाहिये जो उस सूप कि भाँति हो जो अच्छी बातों और ज्ञान को अपनाले और बुरी बातो को हटा दे ा
4 . धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
अर्थ: इस दोहे मे कबीर दास जी कहते है कि हे मन जरा धीरज रख धीरे धीरे ही सब कुछ होता है। यदि कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से भी सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा ा
सारांश : हम सभी को अपने मन पर सय्यम रख कर अपना कार्य करना चाहिये कबीर दास जी कहते है कि हमे अत्यधिक अधीर होकर कोई निर्णय नही लेना चाहिये ा
5 . जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि किसी भी सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान कि अभिलाषा रखनी चाहिए। किसी युद्ध मे तलवार का महत्व होता है न कि उसकी मयान का अर्थात उसे ढकने वाले खोल का।
सारांश : हमें अपने जीवन में जाति पाती एवं उंच निच के भेदभाव मिटा कर लोगो के ज्ञान को महत्व देना चाहिये जिस प्रकार किसी तलवार का महत्व होता है न की उसके म्यान का ा
6 . बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि हमारी बोली अर्थात हमारे बोलने का तरीका अनमोल होता है यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो वह पाता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में सही या गलत सोच समझ कर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।
सारांश :हमे अपने से बड़ो ,छोटो एवं किसी भी प्रकार के प्राणियों के प्रति सदैव स्नेह एवं सम्मान का भाव रखकर अपनी वाणी का प्रयोग करना चाहिये ा हमे यह ध्यान रखना चाहिये कि हमारी वाणी से कभी कोई आहात न हो ा
7 . अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अर्थ: कबीर दास जी कहना चाहते है कि न तो अत्यधिक बोलना अच्छा है और न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही सही है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।
सारांश : हमे सिर्फ बोलना नहीं चाहिये बल्की दुसरो की बात को भी सुनना चाहिये और हमे अत्यधिक चुप भी नहीं रहना चाहिये बल्की यदि कही गलत हो रहा है तो उसके विरोध मई बोलना भी हमारा कर्त्वय है ा
8 . निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
सारांश : हमे अपने आलोचकों को जो हमारी कमियां हमे बताते है उन्हे सदैव अपने समीप रखना चाहिये ताकि उनकी सहायता से हम अपनी कमियों को दूर कर अपने गुणों को निखार सके ा
9 . दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
अर्थ: कबीर दास जी कहना चाहते है कि इस संसार में मनुष्य का जन्म अत्यधिक मुश्किलों के पश्चात मिलता है। यह मानव शरीर उसी प्रकार बार-बार नहीं मिलता जिस प्रकार वृक्ष से पत्ता झड़ जाने के पश्चात तो दोबारा डाल पर नहीं लगता है।
सारांश : हमे मिले हुए इस बहुमुल्य मानव जीवन जो कि कई मुश्किलों से प्राप्त होता है इसका सदुपयोग करना चाहिये हमें हमरे जीवन को अपने ज्ञान मे वृद्धि कर समाज के विकास एवम जन कल्याण में इसका सदुपयोग करना चाहिये ,क्योंकि यह जीवन उस परमेश्वर का हमे दिया हुआ सबसे बड़ा तौफा है ा
10 . कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
सारांश : हमे हमेशा सबके भले की कामना करनी चाहिये कभी किसी के बुरे कि ईच्छा न हो हमारे मन मे कबीर दास जी कहते है कि इस संसार में हम बस कुछ ही समय के लिये आते है इसीलिये सभी के साथ हमे सदभावना के साथ रहना चाहिये ा