नवरात्रि में मां दुर्गा की उपासना का विशेष महत्व है। नवरात्रि के समय विधि विधान से माँ दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है, जिससे वे प्रसन्न होकर भक्तों के दुखों को हर लेती हैं। साथ ही वे सभी मनोकामनाओं को भी पूर्ण करती हैं। पूजा के दौरान आरती जरूरी है। आरती करते समय माता की आरती जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी का गान जरूर करें।आरती के समय थाल में कपूर या फिर गाय के घी का दीपक जलाकर मां दुर्गा की आरती करनी चाहिए। आरती के साथ ही शंख और घंटी अवश्य बजाएं। आरती के समय शंघनाद और घंटी की ध्वनि से घर के अंदर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नकारात्मकता के खत्म होने से व्यक्ति का विकास होता है, उन्नति के द्वार खुल जाते हैं।
1.जय गणेश देवा
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत,चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे,मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े,और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत,कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
'सूर' श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो,शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो,जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥
2. जय अम्बे गौरी
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री।। जय अम्बे गौरी,...।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।। जय अम्बे गौरी,...।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।। जय अम्बे गौरी,...।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।। जय अम्बे गौरी,...।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।। जय अम्बे गौरी,...।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।। जय अम्बे गौरी,...।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।। जय अम्बे गौरी,...।
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।। जय अम्बे गौरी,...।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।। जय अम्बे गौरी,...।
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।। जय अम्बे गौरी,...।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।। जय अम्बे गौरी,...।
अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।। जय अम्बे गौरी,...।
3.अम्बे तू है जगदम्बे काली
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
तेरे भक्त जनों पे माता भीड पड़ी है भारी
दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी
सौ-सौ सिहों से भी बलशाली, है दस भुजाओं वाली,
दुखियों के दुखड़े निवारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
माँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता
पूत-कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता
सब पे करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली
दुखियों के दुखड़े निवारती ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना
हम तो मांगें माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली
सतियों के सत को संवारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
4.ॐ जय जगदीश हरे
ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट ,दास जनों के संकट ,
क्षण में दूर करे ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे दुःख बिन से मन का ,स्वामी दुःख बिन से मन का
सुख सम्पति घर आवे, सुख आनंद घर आवे कष्ट मिटे तन का
ॐ जय जगदीश हरे।
मात पिता तुम मेरे शरण गहूं किसकी , स्वामी शरण गहूं मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा ,तुम बिन और न कोई
आस करूं मैं जिसकी ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा तुम अन्तर्यामी , स्वामी तुम अन्तर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर पारब्रह्म जगदीश्वर
तुम सब के स्वामी ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता ,स्वामी तुम रक्षाकर्ता
मैं मूरख फलकामी ,मैं सेवक तुम स्वामी
कृपा करो भर्ता ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर सबके प्राणपति , स्वामी सबके प्राणपति
किस विधि मिलूं दयामय ,किस विधि मिलूं कृपामय ,
तुमको मैं कुमति ॐ जय जगदीश हरे।
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता तुम ठाकुर मेरे, स्वामी तुम रक्षक मेरे
अपने हाथ उठाओ ,अपने शरण लगाओ द्वार पड़ा तेरे
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ पाप हरो देवा ,स्वमी पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ श्रद्धा प्रेम बढ़ाओ ,सन्तन की सेवा
ॐ जय जगदीश हरे।
ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट ,दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे ॐ जय जगदीश हरे।
5.जय लक्ष्मी माता
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशदिन सेवत, मैया जी को निशदिन सेवत
हरि विष्णु विधाता, ॐ जय लक्ष्मी माता।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता।
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता
ॐ जय लक्ष्मी माता।
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता
ॐ जय लक्ष्मी माता।
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता।
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता।
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशदिन सेवत, मैया जी को निशदिन सेवत
हरि विष्णु विधाता, ॐ जय लक्ष्मी माता।
6.जय सरस्वती माता
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता
सदगुण वैभव शालिनी, सदगुण वैभव शालिनी
त्रिभुवन विख्याता, जय जय सरस्वती माता।
चन्द्रबदनि पद्मासिनि, कृति मंगलकारी मैय्या कृति मंगलकारी
सोहे शुभ हंस सवारी, सोहे शुभ हंस सवारी अतुल तेज धारी
जय जय सरस्वती माता।
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला मैय्या दाएं कर माला
शीश मुकुट मणि सोहे, शीश मुकुट मणि सोहे गल मोतियन माला
जय जय सरस्वती माता।
देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया मैय्या उनका उद्धार किया
बैठी मंथरा दासी, बैठी मंथरा दासी रावण संहार किया
जय जय सरस्वती माता।
विद्यादान प्रदायनि, ज्ञान प्रकाश भरो जन ज्ञान प्रकाश भरो
मोह अज्ञान की निरखा, मोह अज्ञान की निरखा जग से नाश करो
जय जय सरस्वती माता।
धूप, दीप, फल, मेवा, माँ स्वीकार करो ओ माँ स्वीकार करो
ज्ञानचक्षु दे माता, ज्ञानचक्षु दे माता जग निस्तार करो
जय जय सरस्वती माता।
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावै मैय्या जो कोई जन गावै
हितकारी सुखकारी हितकारी सुखकारी ज्ञान भक्ति पावै
जय जय सरस्वती माता।
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता
सदगुण वैभव शालिनी, सदगुण वैभव शालिनी
त्रिभुवन विख्याता जय जय सरस्वती माता।
श्री दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी,नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी,तिहूं लोक फैली उजियारी ॥
शशि ललाट मुख महाविशाला ,नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे ,दरश करत जन अति सुख पावे ॥
तुम संसार शक्ति लै कीना ,पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला ,तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी ,तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ,ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
रूप सरस्वती को तुम धारा ,दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ,परगट भई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ,हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ,श्री नारायण अंग समाहीं ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा ,दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ,महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी अरु धूमावति माता ,भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ,छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥
केहरि वाहन सोह भवानी ,लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ,जाको देख काल डर भाजै ॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला,जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत ,तिहुंलोक में डंका बाजत ॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे ,रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ,जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालिका धारा ,सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब ,भई सहाय मातु तुम तब तब ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका ,तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ,तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें ,दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ,जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ,योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो ,काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ,काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप का मरम न पायो ,शक्ति गई तब मन पछितायो ॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी ,जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ,दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ,तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावें ,रिपू मुरख मौही डरपावे ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी ,सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
करो कृपा हे मातु दयाला ,ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला ॥
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ,तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ,सब सुख भोग परमपद पावै ॥
देवीदास शरण निज जानी ,करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥